प्यारे दोस्तों आज हम भाषा शिक्षण विधियों में प्रायोजना विधि Project vidhi का अध्ययन करेंगे।।
शिक्षण विधि --- एक अध्यापक जब शिक्षण उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए जिस तरीके को आजमाता है या अपनाता है उसे शिक्षण विधि कहते हैं
प्रायोजना विधि के जन्मदाता कौन है ? --
प्रायोजना विधि का मूल रूप से विचारधारा जॉन डीवी ने दी है परंतु प्रयोजना विधि का प्रतिपादन जॉन डीवी के शिष्य किलपैट्रिक ने किया है ।।
प्रयोजना विधि का अर्थ समझते हैं कि हम प्रोजेक्ट कार्य की एक इकाई है जिसमें छात्रों को कार्य की योजना और सम्पन्नता के लिए उत्तरदाई बनाया जाता है
प्रयोजना विधि किन किन सिद्धांतों पर आधारित है ? ---
1. रोचकता --- जब एक बालक को कार्य के प्रति रुचि होती है तब वह बालक स्वयं ही किसी समस्या के प्रोजेक्ट या कार्य को चुनता है
2. प्रायोजना उद्देश्य --- अगर कोई भी समस्या बालकों को हल करने के लिए दी जाती हैं तो वे समस्या उद्देश्य पूर्ण होती है
3. क्रियाशीलता --- बालक अपने स्वभाव से क्रिया शील होता है उसके अंदर जिज्ञासा चिंतन तर्क शक्ति तथा संग्रह आदि की जो प्रवृतियां होती हैं वे उन्हें किसी भी क्रिया के लिए प्रेरित करती है
4. वास्तविकता -- प्रोजेक्ट के द्वारा जो भी कार्य कराया जाता है वह वास्तविक परिस्थितियों के अनुकूल होता है इससे बालकों को प्रेरणा मिलती है
5. सामाजिकता --- बालक समाज का एक अंग होता है उन्हें प्रोजेक्ट विधि द्वारा बालकों को अनेक ऐसे अवसर प्रदान किए जाते हैं जिसके द्वारा उनको सामाजिक जीवन का अनुभव हो सके तथा उनके अंदर सहयोग सद्भावना प्रेम और सहकारिता जैसे सामाजिक गुणों का विकास हो सके।।
6. उपयोगिता --- उपयोगिता वाले कार्यों में ही बालक की रुचि उत्पन्न होती है अतः प्रोजेक्ट विधि से बालक जो कुछ भी सीखता है करके सीखता है
7. स्वतंत्रता --- शिक्षक का दायित्व होता है कि बालक जो भी कार्य करता है उसे स्वतंत्र रूप से करने देना चाहिए तथा उसे किसी भी कार्य के प्रति बाध्य नहीं करना चाहिए
8. व्यक्तिगत विभिन्नता --- प्रत्येक बालक समान नहीं होते हैं बालकों में योग्यता क्षमता तथा अन्य गुणों के अनुसार व्यक्तिगत भिन्नता पाई जाती है
प्रयोजना विधि के कौन कौन से सोपान होते है ?? --
सफलतापूर्वक किसी भी विधि को चलाने के लिए उस विधि के कुछ मुख्य सोपान होते हैं जो आपके सामने निम्न है
1. परिस्थिति उत्पन्न करना
2. प्रायोजना कार्य का चुनाव करना
3. कार्यक्रम बनाना
4. कार्यक्रम क्रियान्वित करना
5. कार्य का मूल्यांकन करना
6. कार्य का लेखा-जोखा रखना यानी कार्य को सुरक्षित रखना
प्रयोजना विधि के महत्व ---
1. प्रत्यक्ष अनुभव होना
2. करके सीखना - यह महत्व प्रयोजना विधि का सबसे महत्वपूर्ण होता है
3. मनोवैज्ञानिकता
4. प्रयोगात्मकता
5. उपयोगिता या व्यवहारिकता
6. स्वाध्याय की प्रवृत्ति
7. अधिगम में सरलता
प्रायोजना विधि के गुण या विशेषताएं ---
1. मनोवैज्ञानिकता
2. चरित्र निर्माण में सहायक
3. प्रयोगात्मक एवं व्यवहारिक विधि
4. पिछड़े बालकों की समस्या
5. तर्क, निर्णय, चिंतन , अन्वेषण शक्ति का विकास
6. प्रजातंत्र वादी भावना का विकास
7. स्थाई एवं स्पष्ट ज्ञान
8. समुदाय के सिद्धांत द्वारा शिक्षण
9. अनुशासन गृह कार्य आदि समस्याओं से मुक्ति
10. हस्त कार्य के प्रति अनुराग
प्यारे दोस्तों मेरे द्वारा जो भी नोट्स बनाए गए हैं पूरी सावधानी से बनाए गए हैं अगर फिर भी कोई समस्या रह जाती है तो यह वेबसाइट जिम्मेदार नहीं होगी।।
।। धन्यवाद ।।
