सामाजिक अधिगम का सिद्धांत :---
( Social Learning Theory )
सामाजिक अधिगम के सिद्धांत का प्रतिपादक कौन है :---
अल्बर्ट बाण्डूरा ( जो अभी भी जीवित है )
अल्बर्ट बाण्डूरा का जन्म कब हुआ :-- 1925 ई. । (कनाडा)
इन्होंने अमेरिका में रहते हुए मनोविज्ञान के क्षेत्र में कार्य किया एवं सबसे पहले 1959 ईस्वी में ( किशोर के सीखने के / व्यवहार पर आधारित ) शोध पत्र प्रस्तुत किया और उसके बाद अधिगम के लिए अवलोकन को महत्वपूर्ण मानते हुए 1977 - 78 में सिद्धांत दिया जिसे व्यवस्थित रूप से 1978 में अपने सिद्धांत को अपनी पुस्तक ( सोशल लर्निंग थ्योरी ) 1978 में प्रकाशित किया ।
प्रारंभ में इन्होंने अपने सिद्धांत को " सामाजिक अधिगम " नाम दिया बाद में उन्होंने जब पियाजे के विचारों को ग्रहण किया तब उनसे प्रभावित होकर 1986 ईस्वी में अपने सिद्धांत में बदलाव किया 1986 ईस्वी में इन्होंने जो पुस्तक लिखी " सोशल फाउंडेशन थॉट एंड एक्शन " इसमें अपने ही पूर्व सिद्धांत का नाम बदलकर " सामाजिक संज्ञानात्मक अधिगम " कर दिया ।
अल्बर्ट बाण्डूरा बीसवीं शताब्दी के चौथे प्रभावशाली मनोविज्ञानी है ।
अल्बर्ट बाण्डूरा ने तीन शब्द दिए जो निम्न है :---
1. व्यवहार ( Behaviour ) :- गत्यात्मक अनुक्रियाएं, शाब्दिक अनुक्रियाएं, सामाजिक अंर्तक्रियाएं ।
2. व्यक्ति ( Person ) :-- संज्ञानात्मक क्षमताएं, शारीरिक विशेषताएं, धारणाएं एवं अभिवृत्तियां
3. वातावरण ( Environment ) :-- भौतिक वातावरण, परिवार तथा मित्र, अन्य सामाजिक प्रभाव ।
हमारा अधिगम हमारे ऊपर ही निर्भर है ।
प्रक्षणीय अधिगम सिद्धांत के प्रतिपादक कौन है :--
अल्बर्ट बाण्डूरा
माॅडलिंग :--- प्रक्षेण द्वारा सीखना --- व्यक्ति दूसरों के मॉडल के व्यवहारों का प्रेक्षण करके तथा उसे दोहराकर वैसा ही व्यवहार करना सीख लेता है । इसे माॅडलिंग कहते है ।
मॉडलिंग की प्रक्रिया के चार आवश्यक तत्व कौन से हैं :--
1. अवधान/ध्यान :--- देखना
2. धारण करना :--- व्यवहार को धारण करना
3. पुनः प्रस्तुतीकरण :--- पुनः उत्पादन दूसरों के सामने प्रस्तुत करना
4. पुनर्बलन :--- सकारात्मक मिलने पर व्यवहार सीखता है
व्यवहार कितने प्रकार का होता है :---
व्यवहार दो प्रकार के होते हैं
1. मान्य व्यवहार ।
2. अमान्य व्यवहार ।
अमान्य व्यवहार को छोड़ देना एवं मान्य व्यवहार को ग्रहण कर लेना ही सामाजिक अधिगम है ।
उपयोग :--- यह सिद्धांत मूल रूप से अभिभावक एवं शिक्षकों केे लिए है जिसके अनुसार इन्हें बच्चों के व्यवहार को देखते हुुुये उन्हें सही दिशा देने कार्य करने में मदद करता है।
यह सिद्धांत बालक में प्रेक्षणीय ज्ञान के द्वारा अधिगम विकास को स्पष्ट करता है ।
