प्यारे दोस्तों आज हम संस्कृत व्याकरण की शिक्षण विधियों का अध्ययन करेंगे।।
संस्कृत व्याकरण शिक्षण की विधियां ---
1. व्याकरण की परिभाषा , महत्व , औचित्य :---
व्याकरण एक ऐसे नियमों का संग्रह है जो भाषा का शुद्धिकरण एवं परिष्करण करते हैं जो भाषा हम प्रयुक्त करते है वह शुद्ध है अथवा अशुद्ध है इसका ज्ञान व्याकरण के माध्यम से होता है
व्याक्रियन्ते विविच्यन्ते शब्दा: अनेनेति व्याकरणम्
पतंजलि रचित महाभाष्यकार के अनुसार --- लक्ष्य दक्षिणे व्याकरणम्
शब्दों के साधुत्वता का प्रदर्शन करने वाला व्याकरण है
व्याकरण शास्त्र के त्रिमुनी कौन-कौन है --
1. पाणिनि --- अष्टाध्यायी - सूत्रकार
2. कात्यायन --- वार्तिक - वार्तिकार
3. पतंजलि --- महाभाष्य - भाष्य/व्याख्याकार
वर्तमान में व्याकरण की सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक -- अष्टाध्यायी है।।
2. व्याकरण शिक्षण के उद्देश्य ----
1. छात्रों को भाषा तत्वों का ज्ञान कराना।
2. छात्रों को भाषा की अखंड इकाई, वर्ण अक्षर, शब्द वाक्य का ज्ञान कराना ।
3. छात्रों को वाक्य संयोजन कर्म का ज्ञान कराना
4. छात्रों को ध्वनि तत्वों का ज्ञान कराना
5. छात्रों को व्याकरण में शब्दों रूपों एवं धातु रूपों को कंठस्थ कराना ।
6. छात्रों को अनुस्वार, विसर्ग, हलंत, अच्-हल् ध्वनियों एवं अयोगवाहो इत्यादि का ज्ञान करवाना
7. छात्रों को पदों एवं वाक्यों के उच्चारण की शुद्धता का ज्ञान कराना ।
8. छात्रों को व्याकरण के सैद्धांतिक नियम जैसे - संधि, समास, कारक, प्रत्यय, संज्ञा इत्यादि का ज्ञान कराना ।
3. व्याकरण शिक्षण की पाठ योजना ----
1. औपचारिक बिन्दव: -- छात्राध्यापक नाम, विषय, दिनांक, कालांश, प्रकरणम् , उपप्रकरणम् , कक्षा
2. सामान्य उद्देश्यम् -- ज्ञानात्मकं , अर्थ ग्रहणात्मकम् , अभिव्यक्तात्मकम्
3. सहायक सामग्री -- सुधाखण्डानि , मार्जनी
4. पूर्वज्ञानम्
5. प्रस्तावना प्रश्नानी
6. उद्देश्य कथनम्
7. प्रस्तुतीकरणम्
8. बोध प्रश्नानी / पुनरावृति प्रश्नानी
9. मूल्यांकन प्रश्नानी
10. ग्रह कार्यम्
4. व्याकरण शिक्षण की विधियां ----
1. सूत्र / कण्ठीस्थीकरण विधि
2. पारायण विधि
3. अव्याकृत विधि
4. अनौपचारिक विधि
5. व्याख्या विधि
6. समवाय विधि
7. भण्डारकर विधि / व्याकरणानुवाद विधि
8. आगमन - निगमन विधि

